Discoverहिन्दी कहानियाँ Hindi StoryIsmat Chughtai's story 'then die' | इस्मत चुग़ताई की कहानी 'तो मर जाओ'
Ismat Chughtai's story 'then die' | इस्मत चुग़ताई की कहानी 'तो मर जाओ'

Ismat Chughtai's story 'then die' | इस्मत चुग़ताई की कहानी 'तो मर जाओ'

Update: 2023-01-30
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“मैं उसके बिना जिन्दा नहीं रह सकती!” उन्होंने फैसला किया।


“तो मर जाओ!” जी चाहा कह दूँ। पर नहीं कह सकती। बहुत से रिश्ते हैं, जिनका लिहाज करना ही पड़ता है। एक तो दुर्भाग्य से हम दोनों औरत जात हैं। न जाने क्यों लोगों ने मुझे नारी जाति की समर्थक और सहायक समझ लिया है। शायद इसलिए कि मैं अपने भतीजों को भतीजियों से ज्यादा ठोका करती हूँ।


खुदा कसम, मैं किसी विशेष जाति की तरफदार नहीं। मेरी भतीजियाँ अपेक्षाकृत सीधी और भतीजे बड़े ही बदमाश हैं। ऐसी हालत में हर समझदार उन्हें सुधारने के लिए डाँटते-फटकारते रहना इन्सानी फर्ज समझता है।


पर उन्हें यह कैसे समझाऊँ। वे मुझे अपनी शुभचिन्तक मान चुकी हैं। और वह लड़की, जो किसी के बिना जिन्दा न रह सकने की स्थिति को पहुँच चुकी हो, कुछ हठीली होती है, इसलिए मैं कुछ भी करूँ, उसके प्रति अपनी सहानुभूति से इनकार नहीं कर सकती। अनचाहे या अनमने रूप से सही, मुझे उनके हितैषियों और शुभचिन्तकों की पंक्ति में खड़ा होना पड़ता है।


दुर्भाग्य से मेरा स्वास्थ्य हमेशा ही अच्छा रहा और बीमार होकर मुर्गी के शोरबे और अंगूर खाने के मौके बहुत ही कम मिल पाये। यही कारण था कि शायद कभी प्राण-घातक किस्म का इश्क न हो सका। हमारे अब्बा जरूरत से ज्यादा सावधानी बरतने वालों में से थे। हर बीमारी की समय से पहले ही रोक-थाम कर दिया करते थे। बरसात आयी और पानी उबाल कर मिलने लगा। आस-पास के सारे कुँओं में दवाइयाँ पड़ गयीं। खोंचे वालों के चालान करवाने शुरू कर दिये। हर चीज ढँकी रहे। बेचारी मक्खियाँ गुस्से से भनभनाया करतीं, क्या मजाल जो एक जर्रा मिल जाये। मलेरिया फैलने से पहले कुनेन हलक से उतार दी जाती और फोड़े-फुंसियों से बचने के लिए चिरायता पिलाया जाता।

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Rajesh Kumar